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Sapno Ke Se Din Ch 2 Sanchayan 10th Hindi notes

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1. कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती-पाठ के किस अंश से यह सिद्ध होता है?

उत्तर- कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती, यह पाठ के इस अंश से सिद्ध होता है हमारे आधे से अधिक साथी राजस्थान तथा हरियाणा से आकर मंडी में व्यापार या दुकानदारी करते थे। जब वे छोटे थे तो उनकी बोली हमें बहुत कम समझ आती थी, इसलिए उनके कुछ शब्द सुन कर हमें हँसी आती थी, लेकिन खेलते समय सभी एक-दूसरे की बात समझ लेते। इससे सिद्ध हो जाता है कि कोई भाषा आपसी व्यवहार में बाधक नहीं होती।

प्रश्न 2. पीटी साहब की ‘शाबाश’ फ़ौज के तमगों-सी क्यों लगती थी? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- पीटी साहब प्रीतमचंद बहुत कड़क इनसान थे। उन्हें किसी ने न हँसते देखा न किसी की प्रशंसा करते। सभी छात्र उनसे भयभीत रहते थे। वे मार-मारकर बच्चों की चमड़ी तक उधेड़ देते थे। छोटे-छोटे बच्चे यदि थोड़ा-सा भी अनुशासन भंग करते तो वे उन्हें कठोर सजा देते थे। ऐसे कठोर स्वभाव वाले पीटी साहब बच्चों के द्वारा गलती न करने पर अपनी चमकीली आँखें हल्के से झपकाते हुए उन्हें शाबाश कहते थे। उनकी यह शाबाश बच्चों को फौज़ के सारे तमगों को जीतने के समान लगती थी।


प्रश्न 3. नई श्रेणी में जाने और नई कापियों और पुरानी किताबों से आती विशेष गंध से लेखक को बालमन क्यों उदास हो उठता था?

उत्तर- नयी श्रेणी में जाकर लेखक का बालमन इसलिए उदास हो जाता था, क्योंकि उसे किताबें अन्य लड़कों द्वारा पढ़ीहुई ही पढ़नी पड़ती थीं। उसके लिए पुरानी किताबों का प्रबंध हेडमास्टर साहब कर देते थे, क्योंकि लेखक के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, जबकि अन्य बच्चे नई कक्षा में नई किताबें खरीदते थे। लेखक का बालमन नई कापियों तथा पुरानी किताबों से आती विशेष गंध से उदास हो उठता था।


प्रश्न 4. स्काउट परेड करते समय लेखक अपने को महत्त्वपूर्ण ‘आदमी’ फ़ौजी जवान क्यों समझने लगता था?

उत्तर- लेखक गुरदयाल सिंह फौज़ी बनना चाहता था। उसने फुल बूट और शानदार वर्दी पहने लेफ्ट-राइट करते फौज़ी जवानों की परेड को देखा था। इसी कारण स्काउट परेड के समय धोबी की धुली वर्दी, पालिश किए बूट तथा जुराबों को पहन वह स्वयं को फौज़ी जवान ही समझता था। स्काउट परेड में जब पीटी मास्टर लेफ्ट राइट की आवाज या मुँह की सीटी बजाकर मार्च करवाया करते थे तथा उनके राइट टर्न या लेफ्ट टर्न या अबाऊट टर्न कहने पर लेखक अपने छोटे-छोटे बूटों की एड़ियों पर दाएँ-बाएँ या एक कदम पीछे मुड़कर बूटों की ठक-ठक की आवाज़ करते हुए स्वयं को विद्यार्थी न समझकर एक महत्त्वपूर्ण फौजी समझने लगता था।


प्रश्न 5. हेडमास्टर शर्मा जी ने पीटी साहब को क्यों मुअत्तल कर दिया?

उत्तर- पीटी साहब चौथी कक्षा को फ़ारसी भी पढ़ाते थे। एक दिन बच्चे उनके द्वारा दिया गया शब्द-रूप रट कर नहीं आए। इस पर उन्होंने बच्चों को पीठ ऊँची करके क्रूरतापूर्ण ढंग से मुर्गा बनने का आदेश दिया, तो उस समय वहाँ हेडमास्टर साहब आ गए। यह दृश्य देखकर हेडमास्टर उत्तेजित हो उठे। इसी कारण उन्होंने पीटी साहब को मुअत्तल कर दिया।

प्रश्न 6. लेखक के अनुसार उन्हें स्कूल खुशी से भागे जाने की जगह न लगने पर भी कब और क्यों उन्हें स्कूल जाना अच्छा लगने लगा?

उत्तर- ‘सपनों के-से दिन’ पाठ के लेखक गुरदयाल सिंह के अनुसार उन्हें तथा उनके साथियों को बचपन में स्कूल जाना अच्छा नहीं लगता था। चौथी कक्षा तक कुछ लड़के को छोड़कर अन्य सभी साथी रोते-चिल्लाते हुए स्कूल जाया करते थे। स्कूल में धोबी पिटाई तथा मास्टरों की डाँट-फटकार के कारण स्कूल उन्हें एक नीरस व भयानक स्थान प्रतीत होता था, जिसके प्रति उनके मन में एक भय-सी बैठ गया था।

इसके बावजूद कई बार ऐसी स्थितियाँ आती थीं जब उन्हें स्कूल जाना अच्छा भी लगता था। यह मौका तब आता था जब उनके पीटी सर स्काउटिंग का अभ्यास करवाते थे। वे पढ़ाई-लिखाई के स्थान पर लड़कों के हाथों में नीली-पीली झंडियाँ पकड़ा देते थे, वे वन-टू-श्री करके इन झंड़ियों को ऊपर-नीचे करवाते थे। हवा में लहराती यह झंडिया बड़ी अच्छी लगती थीं। अच्छा काम करने पर पीटी सर की शाबाशी भी मिलती थी, तब यही कठोर पीटी सर बच्चों को बड़े अच्छे लगते थे। ऐसे अवसर पर स्कूल आना अच्छा व सुखद प्रतीत होता था।

प्रश्न 7. लेखक अपने छात्र जीवन में स्कूल से छुट्टयों में मिले काम को पूरा करने के लिए क्या-क्या योजनाएँ बनाया करता था और उसे पूरा न कर पाने की स्थिति में किसकी भाँति ‘बहादुर’ बनने की कल्पना किया करता था?

उत्तर- लेखक अपने छात्र जीवन में स्कूल से छुट्टियों में मिले काम को पूरा करने के लिए तरह-तरह की योजनाएँ बनाया करता था। जैसे-हिसाब के मास्टर जी द्वारा दिए गए 200 सवालों को पूरा करने के लिए रोज़ दस सवाल निकाले जाने पर 20 दिन में पूरे हो जाएँगे, लेकिन खेल-कूद में छुट्टियाँ भागने लगतीं, तो मास्टर जी की पिटाई का डर सताने लगता। फिर लेखक रोज़ के 15 सवाल पूरे करने की योजना बनाता, तब उसे छुट्टियाँ भी बहुत कम लगने लगतीं और दिन बहुत छोटे लगने लगते तथा स्कूल का भय भी बढ़ने लगता। ऐसे में लेखक पिटाई से डरने के बावजूद भी उन लोगों की भाँति बहादुर बनने की कल्पना करने लगता, जो छुट्टियों को काम पूरा करने की बजाय मास्टर जी से पिटना ही अधिक बेहतर समझते थे।


प्रश्न 8. पाठ में वर्णित घटनाओं के आधार पर पीटी सर की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

उत्तर:- पाठ के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि पीटी सर प्रीतमचंद बहुत सरल अध्यापक थे। उनके व्यक्तित्व की विशेषताएँ इस प्रकार हैं

1. बाह्य व्यक्तित्व-पीटी सर अर्थात् प्रीतमचंद ठिगने कद के थे, उनका शरीर दुबला-पतला पर गठीला था। उनका चेहरा चेचक के दागों से भरा था। उनकी आँखें बाज की तरह तेज़ थीं। वे खाकी वर्दी, चमड़े के पंजों वाले बूट पहनते थे। उनके बूटों की ऊँची एड़ियों के नीचे खुरियाँ लगी रहती थीं। बूटों के अगले हिस्से में पंजों के नीचे मोटी सिरों वाले कील ठुके रहते थे।

2. आंतरिक व्यक्तित्व

• कुशल अध्यापक:- प्रीतमचंद एक कुशल अध्यापक थे। वे चौथी श्रेणी के बच्चों को फ़ारसी पढ़ाया करते थे। वे मौखिक अभिव्यक्ति एवं याद करने पर बल दिया करते थे। वे छात्रों को दिन-रात एक करके पढ़ाई करने की शिक्षा दिया करते थे।

• कुशल प्रशिक्षक:- वे कुशल प्रशिक्षक थे। वे छात्रों को स्काउट और गाइड की ट्रेनिंग दिया करते थे वे छात्रों से विभिन्न रंग की झंडियाँ पकड़ाकर हाथ ऊपर-नीचे करके अच्छी ट्रेनिंग दिया करते थे। उनके इस प्रशिक्षण कार्य से छात्र सदा प्रसन्न रहा करते थे। वे उस पर छात्रों द्वारा सही काम करने पर शाबाशी भी देते थे।

• कठोर अनुशासन प्रिय:- प्रीतमचंद अनुशासन प्रिय होने के कारण कठोर अनुशासन बनाए रखते थे। वे छात्रों को भयभीत रखते थे। यदि कोई लड़का अपना सिर इधर-उधर हिला लेता था तो वे उस पर बाघ की तरह झपट पड़ते थे। प्रार्थना करते समय भी वह अनुशासनहीन छात्रों को दंडित करते थे।

• कोमल हृदयी:- प्रीतम चंद बाहर से कठोर किंतु अंदर से कोमल थे। उन्होंने अपने घर में तोते पाल रखे थे, वे उससे बात करते थे और उसे भीगे हुए बादाम भी खिलाया करते थे। इसके अलावा वे छात्रों द्वारा सही काम किए जाने पर उन्हें शाबाशी भी देते थे।


प्रश्न 9. विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पाठ में अपनाई गई युक्तियों और वर्तमान में स्वीकृत मान्यताओं के संबंध में अपने विचार प्रकट कीजिए

उत्तर- विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पाठ में अपनाई युक्तियाँ इस प्रकार से हैं—पीटी साहब बिल्ला मार-मारकर बच्चों की चमड़ी तक उधेड़ देते थे। तीसरी-चौथी कक्षाओं के बच्चों से थोड़ा-सा भी अनुशासन भंग हो जाता, तो उन्हें कठोर सज़ा मिलती थी ताकि वे विद्यार्थी के जीवन में अनुशासन की नींव दृढ़ बना सकें। इसके साथ-साथ विद्यार्थियों को प्रोत्साहित तथा उत्साहित करने के लिए उन्हें ‘शाबाशी’ भी दी जाती थी। लेकिन वर्तमान में स्वीकृत मान्यताएँ इसके विपरीत हैं। शिक्षकों को आज विद्यार्थियों को पीटने का अधिकार नहीं है इसलिए विद्यार्थी निडर होकर अनुशासनहीनता की ओर बढ़ रहे हैं, क्योंकि आज पहले की भाँति विद्यार्थी शिक्षकों से डरते नहीं हैं। इसके लिए विद्यालय और माता-पिता दोनों जिम्मेवार हैं। बच्चों में अनुशासन का विकास करने के लिए उन्हें शारीरिक व मानासिक यातना देना उचित नहीं। उन्हें प्रेमपूर्वक नैतिक मूल्य सिखाए जाने चाहिए, जिनसे उनमें स्वानुशासन का विकास हो सके।


प्रश्न 10. बचपन की यादें मन को गुदगुदाने वाली होती हैं विशेषकर स्कूली दिनों की। अपने अब तक के स्कूली जीवन की खट्टी-मीठी यादों को लिखिए।

उत्तर- बचपन की और विशेषकर स्कूली जीवन की खट्टी-मीठी यादें मन को गुदगुदाती रहती हैं। ये यादें सभी की निजी होती हैं। मेरी भी कुछ ऐसी यादें मेरे साथ हैं। मैं जब नवीं कक्षा में पढ़ती थी मेरी माँ किसी कारणवश बाहर गई थीं। इसलिए मैं बिना गृहकार्य किए और बिना लंच लिए स्कूल पहुँची। पहले तो अध्यापिका से खूब डॉट पड़ी, फिर आधी छुट्टी में मुझे अध्यापिका ने खिड़की के पास खड़ा पाया तो डॉट लगा दी। अगले पीरियड में मुझे बहुत बेचैनी हुई कि अध्यापिका मेरे बारे में क्या सोच रही होंगी, मैं अध्यापिका कक्ष में उनसे मिलने गई। उन्हें देखते ही मेरा रोना छूट गया। उन्होंने रोने का कारण पूछा तो मैंने रोते-रोते उन्हें कारण बताया कि मेरी माता जी घर पर नहीं हैं। उन्होंने मुझे सांत्वना दी फिर मुझे अपने डिब्बे से खाना खिलाया। आज भी मैं इस घटना को याद करती हूँ तो अध्यापिका के प्रति भाव-विभोर हो उठती हूँ।


प्रश्न 11. प्रायः अभिभावक बच्चों को खेलकूद में ज्यादा रुचि लेने पर रोकते हैं और समय बरबाद न करने की नसीहत देते हैं। बताइए

1. खेल आपके लिए क्यों जरूरी हैं?
2. आप कौन से ऐसे नियम-कायदों को अपनाएँगे जिससे अभिभावकों को आपके खेल पर आपत्ति न हो ?

उत्तर- 1. खेल प्रत्येक उम्र के बच्चे के लिए जरूरी हैं। खेल की बच्चे के शारीरिक-मानसिक विकास में अहम भूमिका होती है। खेल बच्चे की सोच को विस्तृत तथा विकसित करते हैं। इनसे बच्चे में सामूहिक रूप से काम करने की भावना का संचार होता है। बच्चे में प्रतिस्पर्धा तथा प्रतियोगिता हेतु आगे बढ़ने की होड़ और दौड़ में भाग लेने की इच्छा पैदा होती है। खेलों में भाग लेने से बच्चे को अपना तथा अपने देश का नाम रोशन करने का सुअवसर प्राप्त होता है।

2. मैं अपने अभिभावकों के लिए वही नियम और कायदों को अपनाऊँगा, जिनसे उनकी भावनाओं को ठेस न पहुँचे इसलिए मैं समय पर खेलूंगा और समय पर खेलकर वापस आऊँगा। खेलने के साथ पढ़ाई पर भी पूरा ध्यान दूंगा। मैं खेलने में उतना ही समय खर्च करूँगा, जितना आवश्यक होगा। अर्थात् मैं केवल वही नियम और कायदे अपनाऊँगा, जिनसे मेरे अभिभावकों को सुख-शांति मिलेगी।

अन्य पाठेतर हल प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. ‘बच्चों की यह स्वाभाविक विशेषता होती है कि खेल ही उन्हें सबसे अच्छा लगता है।’ सपनों के-से दिन नामक पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- ‘सपनों के-से दिन’ नामक पाठ से ज्ञात होता है कि लेखक और उसके बचपन के साथी मिल-जुलकर खेलते थे। खेल खेल में जब उन्हें चोट लग जाती थी और धूल एवं रक्त जमे कई जगह से छिले पाँव लेकर घर जाते थे तो सभी की माँ-बहनें और बाप उन पर तरस खाने की जगह बुरी तरह से पिटाई करते थे, फिर भी वे अगले दिन फिर खेलने चले आते थे। इससे स्पष्ट होता है कि बच्चों को खेलना सबसे अधिक अच्छा लगता है।

प्रश्न 2. लेखक के बचपन के समय बच्चे पढ़ाई में रुचि नहीं लेते थे।-स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- अपने बचपन के दिनों में लेखक जिन बच्चों के साथ खेलता था, उनमें अधिकांश तो स्कूल जाते ही न थे और जो कभी गए भी वे पढ़ाई में अरुचि होने के कारण किसी दिन अपना बस्ता तालाब में फेंककर आ गए और फिर स्कूल गए ही नहीं। उनका सारा ध्यान खेलने में रहता था। इससे स्पष्ट है कि लेखक के बचपन के दिनों में बच्चे पढ़ाई में रुचि नहीं लेते थे।

प्रश्न 3. लेखक के बचपन में बच्चों के न पढ़ पाने के लिए अभिभावक अधिक जिम्मेदार थे। इससे आप कितना सहमत हैं?

उत्तर- लेखक के बचपन में अधिकांश अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजने का प्रयास नहीं करते थे। परचूनिये और आढ़तीये जैसे कारोबारी भी अध्यापक से कहते थे कि मास्टर जी, हमने इसे कौन-सा तहसीलदार लगवाना है। थोड़ा बड़ा हो जाए तो पंडत घनश्याम दास से मुनीमी का काम सिखा देंगे। स्कूल में अभी तक यह कुछ भी नहीं सीख पाया है। इससे स्पष्ट है कि बच्चों की पढ़ाई न हो पाने के लिए अभिभावक अधिक जिम्मेदार थे।

प्रश्न 4. गरमी की छुट्टियों के पहले और आखिरी दिनों में लेखक ने क्या अंतर बताया है?

उत्तर- लेखक ने बताया है कि तब गरमी की छुट्टियाँ डेढ़-दो महीने की हुआ करती थीं। छुट्टियों के शुरू के दो-तीन सप्ताह तक बच्चे खूब खेल-कूद किया करते थे। वे सारा समय खेलने में बिताया करते थे। छुट्टियों के आखिरी पंद्रह-बीस दिनों में अध्यापकों द्वारा दिए गए कार्य को पूरा करने का हिसाब लगाते थे और कार्य पूरा करने की योजना बनाते हुए उन छुट्टियों को भी खेलकूद में बिता देते थे।


प्रश्न 5. लेखक ने ‘सस्ता सौदा’ किसे कहा है? और क्यों?

उत्तर- लेखक ने सस्ता सौदा’ उस समय के मास्टरों द्वारा की जाने वाली पिटाई को कहा है। इसका कारण यह है कि उस समय के अध्यापक गरमी की छुट्टियों के लिए दो सौ सवाल दिया करते थे। बच्चे इसके बारे में तब सोचते जब उनकी छुट्टियाँ पंद्रह-बीस बचती। वे सोचते थे कि एक दिन में दस सवाल करने पर भी बीस दिन में पूरा हो जाएगा। दस दिन छुट्टियाँ और बीतने पर वे बीस सवाल प्रतिदिन पूरा करने की बात सोचते पर काम न करते। अंत में मास्टरों की पिटाई को सस्ता सौदा समझकर उसे ही स्वीकार कर लेते थे।

प्रश्न 6. लेखक ने सातवीं कक्षा तक की जो पढ़ाई की उसमें स्कूल के हेडमास्टर शर्मा जी का योगदान अधिक था। स्पष्ट कीजिए।
अथवा
लेखक की पढ़ाई में हेडमास्टर शर्मा जी का योगदान स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- लेखक को याद है कि उस समय पूरे साल की किताबें एक या दो रुपए में आ जाती थीं फिर भी अभिभावक पैसों की कमी के कारण नहीं दिला पाते थे। ऐसी स्थिति में उसकी पढ़ाई भी तीसरी-चौथी में छूट जाती, परंतु स्कूल के हेडमास्टर जो किसी अमीर परिवार के बच्चे को पढ़ाने जाते थे, वे उसकी पुरानी किताबें प्रतिवर्ष लेखक को दे दिया करते थे। इससे लेखक ने सातवीं तक की पढ़ाई कर ली। इस तरह उसकी पढ़ाई में स्कूल के हेडमास्टर शर्मा जी का विशेष योगदान था।

प्रश्न 7. पीटी मास्टर प्रीतमचंद को देखकर बच्चे क्यों डरते थे?

उत्तर- पीटी मास्टर प्रीतमचंद को स्कूल के समय में कभी भी हमने मुसकराते या हँसते न देखा था। उनका ठिगना कद, दुबला पतला परंतु गठीला शरीर, माता के दागों से भरा चेहरा और बाज-सी तेज आँखें, खाकी वरदी, चमड़े के चौड़े पंजों वाले बूट-सभी कुछ ही भयभीत करने वाला हुआ करता। उनका ऐसा व्यक्तित्व बच्चों के मन में भय पैदा करता और वे डरते थे।

प्रश्न 8. लेखक और उसके साथी प्रीतमचंद की दी गई सज़ा वाला कौन-सा दिन आजीवन नहीं भूल सके?
अथवा
फ़ारसी की कक्षा में मास्टर प्रीतमचंद ने किस तरह शारीरिक दंड दिया जो बच्चों को आजीवन याद रहा?

उत्तर- मास्टर प्रीतमचंद बच्चों को चौथी कक्षा में फ़ारसी पढ़ाते थे। बच्चों को फ़ारसी अंग्रेज़ी से भी कठिन लगती थी। एक सप्ताह बाद ही प्रीतमचंद ने बच्चों को शब्द रूप याद करके आने और उसे जबानी सुनाने को कहा पर कठिन होने के कारण कोई भी लड़का न सुना सका। यह देख प्रीतमचंद को गुस्सा आया और उन्होंने बच्चों को मुरगा बना दिया। उनके द्वारा लड़कों को। मुरगा बनाने का ढंग बड़ा ही कष्टदायी होता था। उनके द्वारा दिया गया यह शारीरिक दंड बच्चे आजीवन नहीं भूल सके।

प्रश्न 9. हेडमास्टर ने प्रीतमचंद के विरुद्ध क्या कार्यवाही की?

उत्तर- हेडमास्टर शर्मा जी ने देखा कि प्रीतमचंद ने छात्रों को मुरगा बनवाकर शारीरिक दंड दे रहे हैं तो वे क्रोधित हो उठे। उन्होंने इसे तुरंत रोकने का आदेश दिया। उन्होंने प्रीतमचंद के निलंबन का आदेश रियासत की राजधानी नाभा भेज दिया। वहाँ के शिक्षा विभाग के डायरेक्टर हरजीलाल के आदेश की मंजूरी मिलना आवश्यक था। तब तक प्रीतमचंद स्कूल नहीं आ सकते थे।

प्रश्न 10. प्रीतमचंद के निलंबन के बाद भी बच्चों के मन में उनका डर किस तरह समाया था?

उत्तर- विद्यालय के लड़के पीटी मास्टर प्रीतमचंद की पिटाई से इतने डरे हुए थे कि यह पता होते हुए भी कि पीटी मास्टर प्रीतमचंद को जब तक नाभा से डायरेक्टर ‘बहाल’ नहीं करेंगे तब तक वह स्कूल में कदम नहीं रख सकते, जब भी फ़ारसी की घंटी बजती तो बच्चों की छाती धक्-धक करती फटने को आती। परंतु जब तक शर्मा जी स्वयं या मास्टर नौहरिया राम जी कमरे में फ़ारसी पढ़ाने न आ जाते, उनके चेहरे मुझए रहते। इस तरह उनका डर बच्चों के मन में जमकर बैठ चुका था।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. लेखक ने अपने विद्यालय को हरा-भरा बनाने के लिए किए गए प्रयासों का वर्णन किया है। इससे आपको क्या प्रेरणा मिलती है?(मूल्यपरक प्रश्न)

उत्तर- लेखक के विद्यालय में अंदर जाने के रास्ते के दोनों ओर अलियार के बडे ढंग से कटे-छाँटे झाड उगे थे। उसे उनके नीम जैसे पत्तों की गंध अच्छी लगती थी। इसके अलावा उन दिनों क्यारियों में कई तरह के फूल उगाए जाते थे। इनमें गुलाब, गेंदा और मोतिया की दूध-सी कलियाँ होती थीं जिनकी महक बच्चों को आकर्षित करती थी। ये फूलदार पौधे विद्यालय की सुंदरता में वृद्धि करते थे। इससे हमें यह प्रेरणा मिलती है कि हमें भी अपने विद्यालय को स्वच्छ बनाते हुए हरा-भरा बनाने का प्रयास करना चाहिए। हमें तरह-तरह के पौधे लगाकर उनकी देखभाल करना चाहिए और विद्यालय को हरा-भरा बनाने में अपना योगदान देना चाहिए।


प्रश्न 2. लेखक और उसके साथियों द्वारा गरमी की छुट्टियाँ बिताने का ढंग आजकल के बच्चों द्वारा बिताई जाने वाली छुट्टियों से किस तरह अलग होता था? (मूल्यपरक प्रश्न)

उत्तर- लेखक और उसके साथी गरमी की छुट्टियाँ खेलकूद कर बिताते थे। वे घर से कुछ दूर तालाब पर चले जाते, कपड़े उतार पानी में कूद जाते और कुछ समय बाद, भागते हुए एक रेतीले टीले पर जाकर, रेत के ऊपर लेटने लगते। गीले शरीर को गरम रेत से खूब लथपथ कर उसी तरह भागते, किसी ऊँची जगह से तालाब में छलाँग लगा देते। रेत को गंदले पानी से साफ़ कर फिर टीले की ओर भाग जाते।

याद नहीं कि ऐसा, पाँच-दस बार करते या पंद्रह-बीस बार करते हुए आनंदित होते। आजकल के बच्चों द्वारा ग्रीष्मावकाश पूरी तरह अलग ढंग से बिताया जाता है। अब तालाब न रहने से वहाँ नहाने का आनंद नहीं लिया जा सकता। बच्चे घर में रहकर लूडो, चेस, वीडियो गेम, कंप्यूटर पर गेम जैसे इंडोर गेम खेलते हैं। वे टीवी पर कार्टून और फ़िल्में देखकर अपना समय बिताते हैं। कुछ बच्चे माता-पिता के साथ ठंडे स्थानों या पर्वतीय स्थानों की सैर के लिए जाते हैं।


प्रश्न 3. मास्टर प्रीतमचंद को स्कूल से क्यों निलंबित कर दिया गया? निलंबन के औचित्य और उस घटना से उभरने वाले जीवन-मूल्यों पर विचार कीजिए। (मूल्यपरक प्रश्न)

उत्तर- मास्टर प्रीतमचंद सख्त अध्यापक थे। वे छात्रों की जरा-सी गलती देखते ही उनकी पिटाई कर देते थे। वे छात्रों को फ़ारसी पढ़ाते थे। छात्रों को पढ़ाते हुए अभी एक सप्ताह भी न बीता था कि प्रीतमचंद ने उन्हें शब्द रूप याद करके आने को कहा। अगले दिन जब कोई भी छात्र शब्द रूप न सुना सका तो उन्होंने सभी को मुरगा बनवा दिया और पीठ ऊँची करके खड़े होने के लिए कहा। इसी समय हेडमास्टर साहब वहाँ आ गए। उन्होंने प्रीतमचंद को ऐसा करने से तुरंत रोकने के लिए कहा और उन्हें निलंबित कर दिया।

प्रीतमचंद का निलंबन उचित ही था, क्योंकि बच्चों को इस तरह फ़ारसी क्या कोई भी विषय नहीं पढ़ाया जा सकता है। शारीरिक दंड देने से बच्चों को ज्ञान नहीं दिया जा सकता है। इससे बच्चे दब्बू हो जाते हैं। उनके मन में अध्यापकों और शिक्षा के प्रति भय समा जाता है। इससे पढ़ाई में उनकी रुचि समाप्त हो जाती है।


प्रश्न 4. ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में हेडमास्टर शर्मा जी की, बच्चों को मारने-पीटने वाले अध्यापकों के प्रति क्या धारणा थी? जीवन-मूल्यों के संदर्भ में उसके औचित्य पर अपने विचार लिखिए। (मूल्यपरक प्रश्न) (CBSE Delhi 2013)

उत्तर- ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में वर्णित हेडमास्टर शर्मा जी बच्चों से प्यार करते थे। वे बच्चों को प्रेम, अपनत्व, पुरस्कार आदि के माध्यम से बच्चों को अनुशासित रखते हुए उन्हें पढ़ाने के पक्षधर थे। वे गलती करने वाले छात्र की भी पिटाई करने के पक्षधर न थे। जो अध्यापक बच्चों को मारने-पीटने या शारीरिक दंड देने का तरीका अपनाते थे, उनके प्रति उनकी धारणा अच्छी न थी। ऐसे अध्यापकों के विरुद्ध वे कठोर कदम उठाते थे। ऐसे अध्यापकों को स्कूल में आने से रोकने के लिए वे उनके निलंबन तक की सिफ़ारिश कर देते थे।

हेडमास्टर शर्मा जी का ऐसा करना पूरी तरह उचित था, क्योंकि बच्चों के मन से शिक्षा का भय निकालने के लिए मारपीट जैसे तरीके को बच्चों से कोसों दूर रखा जाना चाहिए। मारपीट के भय से अनेक बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं तो बहुत से डरे-सहमें कक्षा में बैठे रहते हैं और पढ़ाई के नाम पर किसी तरह दिन बिताते हैं। ऐसे बच्चों के मन में अध्यापकों के सम्मान के नाम पर घृणा भर जाती है।


प्रश्न 5. ‘सपनों के-से दिन’ पाठ के आधार पर बताइए कि बच्चों का खेलकूद में अधिक रुचि लेना अभिभावकों को अप्रिय क्यों लगता था? पढ़ाई के साथ खेलों का छात्र जीवन में क्या महत्त्व है और इससे किन जीवन-मूल्यों की प्रेरणा मिलती है? (मूल्यपरक प्रश्न) (CBSE Foreign 2014)

उत्तर- ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में जिस समय का वर्णन हुआ है उस समय अधिकांश अभिभावक अनपढ़ थे। वे निरक्षर होने के कारण शिक्षा के महत्त्व को नहीं समझते थे। इतना ही नहीं वे खेलकूद को समय आँवाने से अधिक कुछ नहीं मानते थे। अपनी इसी सोच के कारण, बच्चे खेलकूद में जब चोटिल हो जाते और कई जगह छिला पाँव लिए आते तो उन पर रहम करने की जगह पिटाई करते। वे शारीरिक विकास और जीवन-मूल्यों के उन्नयन में खेलों की भूमिका को नहीं समझते थे, इसलिए बच्चों को खेलकूद में रुचि लेना उन्हें अप्रिय लगता था।

छात्रों के लिए पढ़ाई के साथ-साथ खेलों का भी विशेष महत्त्व है। ये खेलकूद एक ओर हमारे शारीरिक और मानसिक विकास के लिए आवश्यक हैं, तो दूसरी ओर सहयोग की भावना, पारस्परिकता, सामूहिकता, मेल-जोल रखने की भावना, हार-जीत को समान समझना, त्याग, प्रेम-सद्भाव जैसे जीवन-मूल्यों को उभारते हैं तथा उन्हें मजबूत बनाते हैं। इन्हीं जीवन-मूल्यों को अपना कर व्यक्ति अच्छा इनसान बनता है।

MCQ

Question 2.
फ़ौज में भर्ती करने के लिए अफसरों के साथ नौटंकी वाले क्यों आते थे ?
(a) नौटंकी करने
(b) फ़ौज के सुख, आराम और बहादुरी को दिखने के लिए
(c) कोई नहीं
(d) बहादुरी को दिखने के लिए

Answersheet below


Question 3.
उन दिनों बच्चों का अपने अभिभावकों के साथ कैसा संबंध था ?
(a) अभिभावक बच्चो के काम में रूचि नहीं रखते थे
(b) बच्चो को अपना अधिकार समझते थे
(c) शाबाशी भी नहीं देते थे
(d) सभी

Answersheet below


Question 4.
लेखक गर्मियों की छुट्टियां कैसे व्यतीत करता था ?
(a) नानी के घर जाकर
(b) मौज मस्ती करते हुए
(c) दोनों
(d) कोई नहीं

Answersheet below


Question 5.
आज का बचपन पुराने समय के बचपन से कैसे भिन्न है ?
(a) बच्चो के पास खुला समय नहीं है
(b) बच्चे भोले होते थे
(c) बच्चे माता पिता का कहना मानते थे
(d) बच्चो के पास खुला समय नहीं है

Answersheet below


Question 6.
लेखक को बचपन में स्कूल जाते हुए किन चीजों की महक आज भी याद है ?
(a) नीम के पत्तो की
(b) फूलो की तेज गंद
(c) दोनों
(d) कोई नहीं

Answersheet below


Question 7.
बच्चे “रेल बम्बा” किसको कहते थे ?
(a) अपने नेता ओमा के सर की टक्कर को
(b) रेल की सीटी को
(c) रेल इंजन को
(d) कोई नहीं

Answersheet below


Question 8.
सपनो के से दिन पाठ पाठक को कैसा अनुभव करवाता है ?
(a) लेखक ने हमारे बचपन की बात लिख दी
(b) अच्छा
(c) बुरा
(d) कोई नहीं

Answersheet below


Question 9.
हैडमास्टर साहिब का विद्यार्थियो के साथ कैसा व्यवहार था ?
(a) कड़क
(b) कठोर बहुत ही मृदुल था ,
(c) वे बच्चों को बिलकुल डांटते नहीं थे
(d) कोई नहीं

Answersheet below


Question 10.
लेखक के समय में अभिभावक बच्चो को स्कूल भेजने में दिलचस्पी क्यों नहीं लेते थे ?
(a) बच्चो को अपने साथ काम में लगा लेते थे
(b) उनको लगता था इन्होने कौन सा है तहसीलदार बनना है
(c) दोनों
(d) कोई नहीं

Answersheet below


Question 11.
हैड मास्टर लड़के की किताबे क्यों लाकर देते थे ?
(a) उसे पढ़ने का शौंक था
(b) किताबे इकठी करने का शौंक था
(c) लेखक के परिवार की आर्थिक स्तिथि अच्छी नहीं थी
(d) कोई नहीं

Answersheet below


Question 12.
इस पाठ के माध्यम से लेखक ने किन दिनों का वर्णन किया है ?
(a) आज़ादी के दिनों का
(b) अंग्रेजो के दिनों का
(c) अपने स्कूल के दिनों का
(d) कोई नहीं

Answersheet below


Question 13.
पी. टी सर खाल खींचने के मुहावरे को कब प्रत्यक्ष दिखाते थे ?
(a) जब कोई लड़का अपना सर हिलाता
(b) ज ब कोई लड़का पिंडली खुजलाता
(c) कोई नहीं
(d) दोनों

Answersheet below


Question 14.
लड़के किसके डर से कतार खड़े रहते ?
(a) मास्टर प्रीतम चंद की घुड़की के डर से
(b) मार के डर से
(c) कोई नहीं
(d) घुड़की के डर से

Answersheet below


Question 15.
स्कूल के पी टी सर का क्या नाम था ?
(a) मास्टर प्रीतम चंद
(b) हरीश चंद
(c) मुकुंद लाल
(d) कोई नहीं

Answersheet below


पाठ 2- सपनों के-से दिन

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1. कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती-पाठ के किस अंश से यह सिद्ध होता है?

उत्तर- कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती, यह पाठ के इस अंश से सिद्ध होता है हमारे आधे से अधिक साथी राजस्थान तथा हरियाणा से आकर मंडी में व्यापार या दुकानदारी करते थे। जब वे छोटे थे तो उनकी बोली हमें बहुत कम समझ आती थी, इसलिए उनके कुछ शब्द सुन कर हमें हँसी आती थी, लेकिन खेलते समय सभी एक-दूसरे की बात समझ लेते। इससे सिद्ध हो जाता है कि कोई भाषा आपसी व्यवहार में बाधक नहीं होती।

प्रश्न 2. पीटी साहब की ‘शाबाश’ फ़ौज के तमगों-सी क्यों लगती थी? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- पीटी साहब प्रीतमचंद बहुत कड़क इनसान थे। उन्हें किसी ने न हँसते देखा न किसी की प्रशंसा करते। सभी छात्र उनसे भयभीत रहते थे। वे मार-मारकर बच्चों की चमड़ी तक उधेड़ देते थे। छोटे-छोटे बच्चे यदि थोड़ा-सा भी अनुशासन भंग करते तो वे उन्हें कठोर सजा देते थे। ऐसे कठोर स्वभाव वाले पीटी साहब बच्चों के द्वारा गलती न करने पर अपनी चमकीली आँखें हल्के से झपकाते हुए उन्हें शाबाश कहते थे। उनकी यह शाबाश बच्चों को फौज़ के सारे तमगों को जीतने के समान लगती थी।

प्रश्न 3. नई श्रेणी में जाने और नई कापियों और पुरानी किताबों से आती विशेष गंध से लेखक को बालमन क्यों उदास हो उठता था?

उत्तर- नयी श्रेणी में जाकर लेखक का बालमन इसलिए उदास हो जाता था, क्योंकि उसे किताबें अन्य लड़कों द्वारा पढ़ीहुई ही पढ़नी पड़ती थीं। उसके लिए पुरानी किताबों का प्रबंध हेडमास्टर साहब कर देते थे, क्योंकि लेखक के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, जबकि अन्य बच्चे नई कक्षा में नई किताबें खरीदते थे। लेखक का बालमन नई कापियों तथा पुरानी किताबों से आती विशेष गंध से उदास हो उठता था।

प्रश्न 4. स्काउट परेड करते समय लेखक अपने को महत्त्वपूर्ण ‘आदमी’ फ़ौजी जवान क्यों समझने लगता था?

उत्तर- लेखक गुरदयाल सिंह फौज़ी बनना चाहता था। उसने फुल बूट और शानदार वर्दी पहने लेफ्ट-राइट करते फौज़ी जवानों की परेड को देखा था। इसी कारण स्काउट परेड के समय धोबी की धुली वर्दी, पालिश किए बूट तथा जुराबों को पहन वह स्वयं को फौज़ी जवान ही समझता था। स्काउट परेड में जब पीटी मास्टर लेफ्ट राइट की आवाज या मुँह की सीटी बजाकर मार्च करवाया करते थे तथा उनके राइट टर्न या लेफ्ट टर्न या अबाऊट टर्न कहने पर लेखक अपने छोटे-छोटे बूटों की एड़ियों पर दाएँ-बाएँ या एक कदम पीछे मुड़कर बूटों की ठक-ठक की आवाज़ करते हुए स्वयं को विद्यार्थी न समझकर एक महत्त्वपूर्ण फौजी समझने लगता था।

प्रश्न 5. हेडमास्टर शर्मा जी ने पीटी साहब को क्यों मुअत्तल कर दिया?

उत्तर- पीटी साहब चौथी कक्षा को फ़ारसी भी पढ़ाते थे। एक दिन बच्चे उनके द्वारा दिया गया शब्द-रूप रट कर नहीं आए। इस पर उन्होंने बच्चों को पीठ ऊँची करके क्रूरतापूर्ण ढंग से मुर्गा बनने का आदेश दिया, तो उस समय वहाँ हेडमास्टर साहब आ गए। यह दृश्य देखकर हेडमास्टर उत्तेजित हो उठे। इसी कारण उन्होंने पीटी साहब को मुअत्तल कर दिया।

प्रश्न 6. लेखक के अनुसार उन्हें स्कूल खुशी से भागे जाने की जगह न लगने पर भी कब और क्यों उन्हें स्कूल जाना अच्छा लगने लगा?

उत्तर- ‘सपनों के-से दिन’ पाठ के लेखक गुरदयाल सिंह के अनुसार उन्हें तथा उनके साथियों को बचपन में स्कूल जाना अच्छा नहीं लगता था। चौथी कक्षा तक कुछ लड़के को छोड़कर अन्य सभी साथी रोते-चिल्लाते हुए स्कूल जाया करते थे। स्कूल में धोबी पिटाई तथा मास्टरों की डाँट-फटकार के कारण स्कूल उन्हें एक नीरस व भयानक स्थान प्रतीत होता था, जिसके प्रति उनके मन में एक भय-सी बैठ गया था।

इसके बावजूद कई बार ऐसी स्थितियाँ आती थीं जब उन्हें स्कूल जाना अच्छा भी लगता था। यह मौका तब आता था जब उनके पीटी सर स्काउटिंग का अभ्यास करवाते थे। वे पढ़ाई-लिखाई के स्थान पर लड़कों के हाथों में नीली-पीली झंडियाँ पकड़ा देते थे, वे वन-टू-श्री करके इन झंड़ियों को ऊपर-नीचे करवाते थे। हवा में लहराती यह झंडिया बड़ी अच्छी लगती थीं। अच्छा काम करने पर पीटी सर की शाबाशी भी मिलती थी, तब यही कठोर पीटी सर बच्चों को बड़े अच्छे लगते थे। ऐसे अवसर पर स्कूल आना अच्छा व सुखद प्रतीत होता था।

प्रश्न 7. लेखक अपने छात्र जीवन में स्कूल से छुट्टयों में मिले काम को पूरा करने के लिए क्या-क्या योजनाएँ बनाया करता था और उसे पूरा न कर पाने की स्थिति में किसकी भाँति ‘बहादुर’ बनने की कल्पना किया करता था?

उत्तर- लेखक अपने छात्र जीवन में स्कूल से छुट्टियों में मिले काम को पूरा करने के लिए तरह-तरह की योजनाएँ बनाया करता था। जैसे-हिसाब के मास्टर जी द्वारा दिए गए 200 सवालों को पूरा करने के लिए रोज़ दस सवाल निकाले जाने पर 20 दिन में पूरे हो जाएँगे, लेकिन खेल-कूद में छुट्टियाँ भागने लगतीं, तो मास्टर जी की पिटाई का डर सताने लगता। फिर लेखक रोज़ के 15 सवाल पूरे करने की योजना बनाता, तब उसे छुट्टियाँ भी बहुत कम लगने लगतीं और दिन बहुत छोटे लगने लगते तथा स्कूल का भय भी बढ़ने लगता। ऐसे में लेखक पिटाई से डरने के बावजूद भी उन लोगों की भाँति बहादुर बनने की कल्पना करने लगता, जो छुट्टियों को काम पूरा करने की बजाय मास्टर जी से पिटना ही अधिक बेहतर समझते थे।

प्रश्न 8. पाठ में वर्णित घटनाओं के आधार पर पीटी सर की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

उत्तर:- पाठ के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि पीटी सर प्रीतमचंद बहुत सरल अध्यापक थे। उनके व्यक्तित्व की विशेषताएँ इस प्रकार हैं

1. बाह्य व्यक्तित्व-पीटी सर अर्थात् प्रीतमचंद ठिगने कद के थे, उनका शरीर दुबला-पतला पर गठीला था। उनका चेहरा चेचक के दागों से भरा था। उनकी आँखें बाज की तरह तेज़ थीं। वे खाकी वर्दी, चमड़े के पंजों वाले बूट पहनते थे। उनके बूटों की ऊँची एड़ियों के नीचे खुरियाँ लगी रहती थीं। बूटों के अगले हिस्से में पंजों के नीचे मोटी सिरों वाले कील ठुके रहते थे।

2. आंतरिक व्यक्तित्व

• कुशल अध्यापक:- प्रीतमचंद एक कुशल अध्यापक थे। वे चौथी श्रेणी के बच्चों को फ़ारसी पढ़ाया करते थे। वे मौखिक अभिव्यक्ति एवं याद करने पर बल दिया करते थे। वे छात्रों को दिन-रात एक करके पढ़ाई करने की शिक्षा दिया करते थे।

• कुशल प्रशिक्षक:- वे कुशल प्रशिक्षक थे। वे छात्रों को स्काउट और गाइड की ट्रेनिंग दिया करते थे वे छात्रों से विभिन्न रंग की झंडियाँ पकड़ाकर हाथ ऊपर-नीचे करके अच्छी ट्रेनिंग दिया करते थे। उनके इस प्रशिक्षण कार्य से छात्र सदा प्रसन्न रहा करते थे। वे उस पर छात्रों द्वारा सही काम करने पर शाबाशी भी देते थे।

• कठोर अनुशासन प्रिय:- प्रीतमचंद अनुशासन प्रिय होने के कारण कठोर अनुशासन बनाए रखते थे। वे छात्रों को भयभीत रखते थे। यदि कोई लड़का अपना सिर इधर-उधर हिला लेता था तो वे उस पर बाघ की तरह झपट पड़ते थे। प्रार्थना करते समय भी वह अनुशासनहीन छात्रों को दंडित करते थे।

• कोमल हृदयी:- प्रीतम चंद बाहर से कठोर किंतु अंदर से कोमल थे। उन्होंने अपने घर में तोते पाल रखे थे, वे उससे बात करते थे और उसे भीगे हुए बादाम भी खिलाया करते थे। इसके अलावा वे छात्रों द्वारा सही काम किए जाने पर उन्हें शाबाशी भी देते थे।

प्रश्न 9. विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पाठ में अपनाई गई युक्तियों और वर्तमान में स्वीकृत मान्यताओं के संबंध में अपने विचार प्रकट कीजिए।

उत्तर- विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पाठ में अपनाई युक्तियाँ इस प्रकार से हैं—पीटी साहब बिल्ला मार-मारकर बच्चों की चमड़ी तक उधेड़ देते थे। तीसरी-चौथी कक्षाओं के बच्चों से थोड़ा-सा भी अनुशासन भंग हो जाता, तो उन्हें कठोर सज़ा मिलती थी ताकि वे विद्यार्थी के जीवन में अनुशासन की नींव दृढ़ बना सकें। इसके साथ-साथ विद्यार्थियों को प्रोत्साहित तथा उत्साहित करने के लिए उन्हें ‘शाबाशी’ भी दी जाती थी। लेकिन वर्तमान में स्वीकृत मान्यताएँ इसके विपरीत हैं। शिक्षकों को आज विद्यार्थियों को पीटने का अधिकार नहीं है इसलिए विद्यार्थी निडर होकर अनुशासनहीनता की ओर बढ़ रहे हैं, क्योंकि आज पहले की भाँति विद्यार्थी शिक्षकों से डरते नहीं हैं। इसके लिए विद्यालय और माता-पिता दोनों जिम्मेवार हैं। बच्चों में अनुशासन का विकास करने के लिए उन्हें शारीरिक व मानासिक यातना देना उचित नहीं। उन्हें प्रेमपूर्वक नैतिक मूल्य सिखाए जाने चाहिए, जिनसे उनमें स्वानुशासन का विकास हो सके।

प्रश्न 10. बचपन की यादें मन को गुदगुदाने वाली होती हैं विशेषकर स्कूली दिनों की। अपने अब तक के स्कूली जीवन की खट्टी-मीठी यादों को लिखिए।

उत्तर- बचपन की और विशेषकर स्कूली जीवन की खट्टी-मीठी यादें मन को गुदगुदाती रहती हैं। ये यादें सभी की निजी होती हैं। मेरी भी कुछ ऐसी यादें मेरे साथ हैं। मैं जब नवीं कक्षा में पढ़ती थी मेरी माँ किसी कारणवश बाहर गई थीं। इसलिए मैं बिना गृहकार्य किए और बिना लंच लिए स्कूल पहुँची। पहले तो अध्यापिका से खूब डॉट पड़ी, फिर आधी छुट्टी में मुझे अध्यापिका ने खिड़की के पास खड़ा पाया तो डॉट लगा दी। अगले पीरियड में मुझे बहुत बेचैनी हुई कि अध्यापिका मेरे बारे में क्या सोच रही होंगी, मैं अध्यापिका कक्ष में उनसे मिलने गई। उन्हें देखते ही मेरा रोना छूट गया। उन्होंने रोने का कारण पूछा तो मैंने रोते-रोते उन्हें कारण बताया कि मेरी माता जी घर पर नहीं हैं। उन्होंने मुझे सांत्वना दी फिर मुझे अपने डिब्बे से खाना खिलाया। आज भी मैं इस घटना को याद करती हूँ तो अध्यापिका के प्रति भाव-विभोर हो उठती हूँ।

प्रश्न 11. प्रायः अभिभावक बच्चों को खेलकूद में ज्यादा रुचि लेने पर रोकते हैं और समय बरबाद न करने की नसीहत देते हैं। बताइए

1. खेल आपके लिए क्यों जरूरी हैं?

2. आप कौन से ऐसे नियम-कायदों को अपनाएँगे जिससे अभिभावकों को आपके खेल पर आपत्ति न हो ?

उत्तर- 1. खेल प्रत्येक उम्र के बच्चे के लिए जरूरी हैं। खेल की बच्चे के शारीरिक-मानसिक विकास में अहम भूमिका होती है। खेल बच्चे की सोच को विस्तृत तथा विकसित करते हैं। इनसे बच्चे में सामूहिक रूप से काम करने की भावना का संचार होता है। बच्चे में प्रतिस्पर्धा तथा प्रतियोगिता हेतु आगे बढ़ने की होड़ और दौड़ में भाग लेने की इच्छा पैदा होती है। खेलों में भाग लेने से बच्चे को अपना तथा अपने देश का नाम रोशन करने का सुअवसर प्राप्त होता है।

2. मैं अपने अभिभावकों के लिए वही नियम और कायदों को अपनाऊँगा, जिनसे उनकी भावनाओं को ठेस न पहुँचे इसलिए मैं समय पर खेलूंगा और समय पर खेलकर वापस आऊँगा। खेलने के साथ पढ़ाई पर भी पूरा ध्यान दूंगा। मैं खेलने में उतना ही समय खर्च करूँगा, जितना आवश्यक होगा। अर्थात् मैं केवल वही नियम और कायदे अपनाऊँगा, जिनसे मेरे अभिभावकों को सुख-शांति मिलेगी।

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लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. ‘बच्चों की यह स्वाभाविक विशेषता होती है कि खेल ही उन्हें सबसे अच्छा लगता है।’ सपनों के-से दिन नामक पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- ‘सपनों के-से दिन’ नामक पाठ से ज्ञात होता है कि लेखक और उसके बचपन के साथी मिल-जुलकर खेलते थे। खेल खेल में जब उन्हें चोट लग जाती थी और धूल एवं रक्त जमे कई जगह से छिले पाँव लेकर घर जाते थे तो सभी की माँ-बहनें और बाप उन पर तरस खाने की जगह बुरी तरह से पिटाई करते थे, फिर भी वे अगले दिन फिर खेलने चले आते थे। इससे स्पष्ट होता है कि बच्चों को खेलना सबसे अधिक अच्छा लगता है।

प्रश्न 2. लेखक के बचपन के समय बच्चे पढ़ाई में रुचि नहीं लेते थे।-स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- अपने बचपन के दिनों में लेखक जिन बच्चों के साथ खेलता था, उनमें अधिकांश तो स्कूल जाते ही न थे और जो कभी गए भी वे पढ़ाई में अरुचि होने के कारण किसी दिन अपना बस्ता तालाब में फेंककर आ गए और फिर स्कूल गए ही नहीं। उनका सारा ध्यान खेलने में रहता था। इससे स्पष्ट है कि लेखक के बचपन के दिनों में बच्चे पढ़ाई में रुचि नहीं लेते थे।

प्रश्न 3. लेखक के बचपन में बच्चों के न पढ़ पाने के लिए अभिभावक अधिक जिम्मेदार थे। इससे आप कितना सहमत हैं?

उत्तर- लेखक के बचपन में अधिकांश अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजने का प्रयास नहीं करते थे। परचूनिये और आढ़तीये जैसे कारोबारी भी अध्यापक से कहते थे कि मास्टर जी, हमने इसे कौन-सा तहसीलदार लगवाना है। थोड़ा बड़ा हो जाए तो पंडत घनश्याम दास से मुनीमी का काम सिखा देंगे। स्कूल में अभी तक यह कुछ भी नहीं सीख पाया है। इससे स्पष्ट है कि बच्चों की पढ़ाई न हो पाने के लिए अभिभावक अधिक जिम्मेदार थे।

प्रश्न 4. गरमी की छुट्टियों के पहले और आखिरी दिनों में लेखक ने क्या अंतर बताया है?

उत्तर- लेखक ने बताया है कि तब गरमी की छुट्टियाँ डेढ़-दो महीने की हुआ करती थीं। छुट्टियों के शुरू के दो-तीन सप्ताह तक बच्चे खूब खेल-कूद किया करते थे। वे सारा समय खेलने में बिताया करते थे। छुट्टियों के आखिरी पंद्रह-बीस दिनों में अध्यापकों द्वारा दिए गए कार्य को पूरा करने का हिसाब लगाते थे और कार्य पूरा करने की योजना बनाते हुए उन छुट्टियों को भी खेलकूद में बिता देते थे।

प्रश्न 5. लेखक ने ‘सस्ता सौदा’ किसे कहा है? और क्यों?

उत्तर- लेखक ने सस्ता सौदा’ उस समय के मास्टरों द्वारा की जाने वाली पिटाई को कहा है। इसका कारण यह है कि उस समय के अध्यापक गरमी की छुट्टियों के लिए दो सौ सवाल दिया करते थे। बच्चे इसके बारे में तब सोचते जब उनकी छुट्टियाँ पंद्रह-बीस बचती। वे सोचते थे कि एक दिन में दस सवाल करने पर भी बीस दिन में पूरा हो जाएगा। दस दिन छुट्टियाँ और बीतने पर वे बीस सवाल प्रतिदिन पूरा करने की बात सोचते पर काम न करते। अंत में मास्टरों की पिटाई को सस्ता सौदा समझकर उसे ही स्वीकार कर लेते थे।

प्रश्न 6. लेखक ने सातवीं कक्षा तक की जो पढ़ाई की उसमें स्कूल के हेडमास्टर शर्मा जी का योगदान अधिक था। स्पष्ट कीजिए।

अथवा

लेखक की पढ़ाई में हेडमास्टर शर्मा जी का योगदान स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- लेखक को याद है कि उस समय पूरे साल की किताबें एक या दो रुपए में आ जाती थीं फिर भी अभिभावक पैसों की कमी के कारण नहीं दिला पाते थे। ऐसी स्थिति में उसकी पढ़ाई भी तीसरी-चौथी में छूट जाती, परंतु स्कूल के हेडमास्टर जो किसी अमीर परिवार के बच्चे को पढ़ाने जाते थे, वे उसकी पुरानी किताबें प्रतिवर्ष लेखक को दे दिया करते थे। इससे लेखक ने सातवीं तक की पढ़ाई कर ली। इस तरह उसकी पढ़ाई में स्कूल के हेडमास्टर शर्मा जी का विशेष योगदान था।

प्रश्न 7. पीटी मास्टर प्रीतमचंद को देखकर बच्चे क्यों डरते थे?

उत्तर- पीटी मास्टर प्रीतमचंद को स्कूल के समय में कभी भी हमने मुसकराते या हँसते न देखा था। उनका ठिगना कद, दुबला पतला परंतु गठीला शरीर, माता के दागों से भरा चेहरा और बाज-सी तेज आँखें, खाकी वरदी, चमड़े के चौड़े पंजों वाले बूट-सभी कुछ ही भयभीत करने वाला हुआ करता। उनका ऐसा व्यक्तित्व बच्चों के मन में भय पैदा करता और वे डरते थे।

प्रश्न 8. लेखक और उसके साथी प्रीतमचंद की दी गई सज़ा वाला कौन-सा दिन आजीवन नहीं भूल सके?

अथवा

फ़ारसी की कक्षा में मास्टर प्रीतमचंद ने किस तरह शारीरिक दंड दिया जो बच्चों को आजीवन याद रहा?

उत्तर- मास्टर प्रीतमचंद बच्चों को चौथी कक्षा में फ़ारसी पढ़ाते थे। बच्चों को फ़ारसी अंग्रेज़ी से भी कठिन लगती थी। एक सप्ताह बाद ही प्रीतमचंद ने बच्चों को शब्द रूप याद करके आने और उसे जबानी सुनाने को कहा पर कठिन होने के कारण कोई भी लड़का न सुना सका। यह देख प्रीतमचंद को गुस्सा आया और उन्होंने बच्चों को मुरगा बना दिया। उनके द्वारा लड़कों को। मुरगा बनाने का ढंग बड़ा ही कष्टदायी होता था। उनके द्वारा दिया गया यह शारीरिक दंड बच्चे आजीवन नहीं भूल सके।

प्रश्न 9. हेडमास्टर ने प्रीतमचंद के विरुद्ध क्या कार्यवाही की?

उत्तर- हेडमास्टर शर्मा जी ने देखा कि प्रीतमचंद ने छात्रों को मुरगा बनवाकर शारीरिक दंड दे रहे हैं तो वे क्रोधित हो उठे। उन्होंने इसे तुरंत रोकने का आदेश दिया। उन्होंने प्रीतमचंद के निलंबन का आदेश रियासत की राजधानी नाभा भेज दिया। वहाँ के शिक्षा विभाग के डायरेक्टर हरजीलाल के आदेश की मंजूरी मिलना आवश्यक था। तब तक प्रीतमचंद स्कूल नहीं आ सकते थे।

प्रश्न 10. प्रीतमचंद के निलंबन के बाद भी बच्चों के मन में उनका डर किस तरह समाया था?

उत्तर- विद्यालय के लड़के पीटी मास्टर प्रीतमचंद की पिटाई से इतने डरे हुए थे कि यह पता होते हुए भी कि पीटी मास्टर प्रीतमचंद को जब तक नाभा से डायरेक्टर ‘बहाल’ नहीं करेंगे तब तक वह स्कूल में कदम नहीं रख सकते, जब भी फ़ारसी की घंटी बजती तो बच्चों की छाती धक्-धक करती फटने को आती। परंतु जब तक शर्मा जी स्वयं या मास्टर नौहरिया राम जी कमरे में फ़ारसी पढ़ाने न आ जाते, उनके चेहरे मुझए रहते। इस तरह उनका डर बच्चों के मन में जमकर बैठ चुका था।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. लेखक ने अपने विद्यालय को हरा-भरा बनाने के लिए किए गए प्रयासों का वर्णन किया है। इससे आपको क्या प्रेरणा मिलती है?(मूल्यपरक प्रश्न)

उत्तर- लेखक के विद्यालय में अंदर जाने के रास्ते के दोनों ओर अलियार के बडे ढंग से कटे-छाँटे झाड उगे थे। उसे उनके नीम जैसे पत्तों की गंध अच्छी लगती थी। इसके अलावा उन दिनों क्यारियों में कई तरह के फूल उगाए जाते थे। इनमें गुलाब, गेंदा और मोतिया की दूध-सी कलियाँ होती थीं जिनकी महक बच्चों को आकर्षित करती थी। ये फूलदार पौधे विद्यालय की सुंदरता में वृद्धि करते थे। इससे हमें यह प्रेरणा मिलती है कि हमें भी अपने विद्यालय को स्वच्छ बनाते हुए हरा-भरा बनाने का प्रयास करना चाहिए। हमें तरह-तरह के पौधे लगाकर उनकी देखभाल करना चाहिए और विद्यालय को हरा-भरा बनाने में अपना योगदान देना चाहिए।

प्रश्न 2. लेखक और उसके साथियों द्वारा गरमी की छुट्टियाँ बिताने का ढंग आजकल के बच्चों द्वारा बिताई जाने वाली छुट्टियों से किस तरह अलग होता था? (मूल्यपरक प्रश्न)

उत्तर- लेखक और उसके साथी गरमी की छुट्टियाँ खेलकूद कर बिताते थे। वे घर से कुछ दूर तालाब पर चले जाते, कपड़े उतार पानी में कूद जाते और कुछ समय बाद, भागते हुए एक रेतीले टीले पर जाकर, रेत के ऊपर लेटने लगते। गीले शरीर को गरम रेत से खूब लथपथ कर उसी तरह भागते, किसी ऊँची जगह से तालाब में छलाँग लगा देते। रेत को गंदले पानी से साफ़ कर फिर टीले की ओर भाग जाते।

याद नहीं कि ऐसा, पाँच-दस बार करते या पंद्रह-बीस बार करते हुए आनंदित होते। आजकल के बच्चों द्वारा ग्रीष्मावकाश पूरी तरह अलग ढंग से बिताया जाता है। अब तालाब न रहने से वहाँ नहाने का आनंद नहीं लिया जा सकता। बच्चे घर में रहकर लूडो, चेस, वीडियो गेम, कंप्यूटर पर गेम जैसे इंडोर गेम खेलते हैं। वे टीवी पर कार्टून और फ़िल्में देखकर अपना समय बिताते हैं। कुछ बच्चे माता-पिता के साथ ठंडे स्थानों या पर्वतीय स्थानों की सैर के लिए जाते हैं।

प्रश्न 3. मास्टर प्रीतमचंद को स्कूल से क्यों निलंबित कर दिया गया? निलंबन के औचित्य और उस घटना से उभरने वाले जीवन-मूल्यों पर विचार कीजिए। (मूल्यपरक प्रश्न)

उत्तर- मास्टर प्रीतमचंद सख्त अध्यापक थे। वे छात्रों की जरा-सी गलती देखते ही उनकी पिटाई कर देते थे। वे छात्रों को फ़ारसी पढ़ाते थे। छात्रों को पढ़ाते हुए अभी एक सप्ताह भी न बीता था कि प्रीतमचंद ने उन्हें शब्द रूप याद करके आने को कहा। अगले दिन जब कोई भी छात्र शब्द रूप न सुना सका तो उन्होंने सभी को मुरगा बनवा दिया और पीठ ऊँची करके खड़े होने के लिए कहा। इसी समय हेडमास्टर साहब वहाँ आ गए। उन्होंने प्रीतमचंद को ऐसा करने से तुरंत रोकने के लिए कहा और उन्हें निलंबित कर दिया।

प्रीतमचंद का निलंबन उचित ही था, क्योंकि बच्चों को इस तरह फ़ारसी क्या कोई भी विषय नहीं पढ़ाया जा सकता है। शारीरिक दंड देने से बच्चों को ज्ञान नहीं दिया जा सकता है। इससे बच्चे दब्बू हो जाते हैं। उनके मन में अध्यापकों और शिक्षा के प्रति भय समा जाता है। इससे पढ़ाई में उनकी रुचि समाप्त हो जाती है।

प्रश्न 4. ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में हेडमास्टर शर्मा जी की, बच्चों को मारने-पीटने वाले अध्यापकों के प्रति क्या धारणा थी? जीवन-मूल्यों के संदर्भ में उसके औचित्य पर अपने विचार लिखिए। (मूल्यपरक प्रश्न) (CBSE Delhi 2013)

उत्तर- ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में वर्णित हेडमास्टर शर्मा जी बच्चों से प्यार करते थे। वे बच्चों को प्रेम, अपनत्व, पुरस्कार आदि के माध्यम से बच्चों को अनुशासित रखते हुए उन्हें पढ़ाने के पक्षधर थे। वे गलती करने वाले छात्र की भी पिटाई करने के पक्षधर न थे। जो अध्यापक बच्चों को मारने-पीटने या शारीरिक दंड देने का तरीका अपनाते थे, उनके प्रति उनकी धारणा अच्छी न थी। ऐसे अध्यापकों के विरुद्ध वे कठोर कदम उठाते थे। ऐसे अध्यापकों को स्कूल में आने से रोकने के लिए वे उनके निलंबन तक की सिफ़ारिश कर देते थे।

हेडमास्टर शर्मा जी का ऐसा करना पूरी तरह उचित था, क्योंकि बच्चों के मन से शिक्षा का भय निकालने के लिए मारपीट जैसे तरीके को बच्चों से कोसों दूर रखा जाना चाहिए। मारपीट के भय से अनेक बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं तो बहुत से डरे-सहमें कक्षा में बैठे रहते हैं और पढ़ाई के नाम पर किसी तरह दिन बिताते हैं। ऐसे बच्चों के मन में अध्यापकों के सम्मान के नाम पर घृणा भर जाती है।

प्रश्न 5. ‘सपनों के-से दिन’ पाठ के आधार पर बताइए कि बच्चों का खेलकूद में अधिक रुचि लेना अभिभावकों को अप्रिय क्यों लगता था? पढ़ाई के साथ खेलों का छात्र जीवन में क्या महत्त्व है और इससे किन जीवन-मूल्यों की प्रेरणा मिलती है? (मूल्यपरक प्रश्न) (CBSE Foreign 2014)

उत्तर- ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में जिस समय का वर्णन हुआ है उस समय अधिकांश अभिभावक अनपढ़ थे। वे निरक्षर होने के कारण शिक्षा के महत्त्व को नहीं समझते थे। इतना ही नहीं वे खेलकूद को समय आँवाने से अधिक कुछ नहीं मानते थे। अपनी इसी सोच के कारण, बच्चे खेलकूद में जब चोटिल हो जाते और कई जगह छिला पाँव लिए आते तो उन पर रहम करने की जगह पिटाई करते। वे शारीरिक विकास और जीवन-मूल्यों के उन्नयन में खेलों की भूमिका को नहीं समझते थे, इसलिए बच्चों को खेलकूद में रुचि लेना उन्हें अप्रिय लगता था।

छात्रों के लिए पढ़ाई के साथ-साथ खेलों का भी विशेष महत्त्व है। ये खेलकूद एक ओर हमारे शारीरिक और मानसिक विकास के लिए आवश्यक हैं, तो दूसरी ओर सहयोग की भावना, पारस्परिकता, सामूहिकता, मेल-जोल रखने की भावना, हार-जीत को समान समझना, त्याग, प्रेम-सद्भाव जैसे जीवन-मूल्यों को उभारते हैं तथा उन्हें मजबूत बनाते हैं। इन्हीं जीवन-मूल्यों को अपना कर व्यक्ति अच्छा इनसान बनता है।

MCQ

Question 2.

फ़ौज में भर्ती करने के लिए अफसरों के साथ नौटंकी वाले क्यों आते थे ?

(a) नौटंकी करने

(b) फ़ौज के सुख, आराम और बहादुरी को दिखने के लिए

(c) कोई नहीं

(d) बहादुरी को दिखने के लिए

Answersheet below

Question 3.

उन दिनों बच्चों का अपने अभिभावकों के साथ कैसा संबंध था ?

(a) अभिभावक बच्चो के काम में रूचि नहीं रखते थे

(b) बच्चो को अपना अधिकार समझते थे

(c) शाबाशी भी नहीं देते थे

(d) सभी

Answersheet below

Question 4.

लेखक गर्मियों की छुट्टियां कैसे व्यतीत करता था ?

(a) नानी के घर जाकर

(b) मौज मस्ती करते हुए

(c) दोनों

(d) कोई नहीं

Answersheet below

Question 5.

आज का बचपन पुराने समय के बचपन से कैसे भिन्न है ?

(a) बच्चो के पास खुला समय नहीं है

(b) बच्चे भोले होते थे

(c) बच्चे माता पिता का कहना मानते थे

(d) बच्चो के पास खुला समय नहीं है

Answersheet below

Question 6.

लेखक को बचपन में स्कूल जाते हुए किन चीजों की महक आज भी याद है ?

(a) नीम के पत्तो की

(b) फूलो की तेज गंद

(c) दोनों

(d) कोई नहीं

Answersheet below

Question 7.

बच्चे “रेल बम्बा” किसको कहते थे ?

(a) अपने नेता ओमा के सर की टक्कर को

(b) रेल की सीटी को

(c) रेल इंजन को

(d) कोई नहीं

Answersheet below

Question 8.

सपनो के से दिन पाठ पाठक को कैसा अनुभव करवाता है ?

(a) लेखक ने हमारे बचपन की बात लिख दी

(b) अच्छा

(c) बुरा

(d) कोई नहीं

Answersheet below

Question 9.

हैडमास्टर साहिब का विद्यार्थियो के साथ कैसा व्यवहार था ?

(a) कड़क

(b) कठोर बहुत ही मृदुल था ,

(c) वे बच्चों को बिलकुल डांटते नहीं थे

(d) कोई नहीं

Answersheet below

Question 10.

लेखक के समय में अभिभावक बच्चो को स्कूल भेजने में दिलचस्पी क्यों नहीं लेते थे ?

(a) बच्चो को अपने साथ काम में लगा लेते थे

(b) उनको लगता था इन्होने कौन सा है तहसीलदार बनना है

(c) दोनों

(d) कोई नहीं

Answersheet below

Question 11.

हैड मास्टर लड़के की किताबे क्यों लाकर देते थे ?

(a) उसे पढ़ने का शौंक था

(b) किताबे इकठी करने का शौंक था

(c) लेखक के परिवार की आर्थिक स्तिथि अच्छी नहीं थी

(d) कोई नहीं

Answersheet below

Question 12.

इस पाठ के माध्यम से लेखक ने किन दिनों का वर्णन किया है ?

(a) आज़ादी के दिनों का

(b) अंग्रेजो के दिनों का

(c) अपने स्कूल के दिनों का

(d) कोई नहीं

Answersheet below

Question 13.

पी. टी सर खाल खींचने के मुहावरे को कब प्रत्यक्ष दिखाते थे ?

(a) जब कोई लड़का अपना सर हिलाता

(b) ज ब कोई लड़का पिंडली खुजलाता

(c) कोई नहीं

(d) दोनों

Answersheet below

Question 14.

लड़के किसके डर से कतार खड़े रहते ?

(a) मास्टर प्रीतम चंद की घुड़की के डर से

(b) मार के डर से

(c) कोई नहीं

(d) घुड़की के डर से

Answersheet below

Question 15.

स्कूल के पी टी सर का क्या नाम था ?

(a) मास्टर प्रीतम चंद

(b) हरीश चंद

(c) मुकुंद लाल

(d) कोई नहीं

Answersheet below

Written by Rohit Yadav

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