जयशंकर (जीवन परिचय)
जयशंकर प्रसाद का जन्म सन् 1889 में वाराणसी में हुआ। काशी के प्रसिद्ध क्वींस कॉलेज में वे पढ़ने गए परंतु स्थितियाँ अनुकूल न होने के कारण आठवीं से आगे नहीं पढ़ पाए। बाद में घर पर ही संस्कृत, हिंदी, फ़ारसी का अध्ययन किया। छायावादी काव्य प्रवृत्ति के प्रमुख कवियों में से एक जयशंकर प्रसाद का सन् 1937 में निधन हो गया।
उनकी प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं-चित्राधार, कानन-कुसुम, झरना, आँसू, लहर और कामायनी। आधुनिक हिंदी की श्रेष्ठतम काव्य-कृति मानी जाने वाली कामायनी पर उन्हें मंगलाप्रसाद पारितोषिक दिया गया। वे कवि के साथ-साथ सफल गद्यकार भी थे। अजातशत्रु, चंद्रगुप्त, स्कंदगुप्त और ध्रुवस्वामिनी उनके नाटक हैं तो कंकाल, तितली और इरावती उपन्यास। आकाशदीप, आँधी और इंद्रजाल उनके कहानी संग्रह हैं।
प्रसाद का साहित्य जीवन की कोमलता, माधुर्य, शक्ति और ओज का साहित्य माना जाता है। छायावादी कविता की अतिशय काल्पनिकता, सौंदर्य का सूक्ष्म चित्रण, प्रकृति-प्रेम, देश-प्रेम और शैली की लाक्षणिकता उनकी कविता की प्रमुख विशेषताएँ हैं। इतिहास और दर्शन में उनकी गहरी रुचि थी जो उनके साहित्य में स्पष्ट दिखाई देती है।
जयशंकर पद व उनके अर्थ
1. मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।
आत्मकथा कविता का भावार्थ :- यहाँ कवि ने अपने मन को भँवरे की संज्ञा दी है, जो गुनगुनाकर पता नहीं क्या कहानी कह रहा है। वह यह नहीं समझ पा रहा कि वह अपनी जीवनगाथा की कौनसी कहानी कहे, क्योंकि उसके समीप मुरझाकर गिरते हुए पत्ते जीवन की नश्वरता का प्रतीक हैं। ठीक इसी तरह मनुष्य का जीवन भी एक न एक दिन समाप्त हो जाना है।
2. इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास
आत्मकथा कविता का भावार्थ :- कवि के अनुसार, यह नीला आकाश जो कि अनंत तक फैला हुआ है, उसमें असंख्य लोगों ने अपने जीवन का इतिहास लिखा है। जिसे पढ़कर कवि को ऐसा प्रतीत हो रहा है, मानो उन्होंने स्वयं की आत्मकथा लिखकर खुद का मज़ाक उड़ाया है और लोग इन्हें पढ़ कर उन पर हँस रहे हैं।
3. तब भी कहते हो कह-डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।
आत्मकथा कविता का भावार्थ :- कवि अपने मित्रों से यह प्रश्न करने के लिए बाध्य हो जाता है कि क्या तुम भी यही चाहते हो कि मैं भी अपनी जीवन की सारी दुर्बलताएँ लिख डालूं। जिन्हें पढ़कर तुम लोग मेरी जीवन की खाली गगरी को देखकर मेरा मज़ाक बनाओ।
4. किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले-
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।
आत्मकथा कविता का भावार्थ :- जिन मित्रों ने कवि से आत्मकथा लिखने का आग्रह किया था, उनसे कवि कहते हैं कि मेरी आत्मकथा पढ़कर और मेरे जीवन की गगरी खाली देख कर कहीं ऐसा ना हो कि तुम खुद को मेरे दुखों का कारण समझ बैठो और यह सोचने लग जाओ कि तुम्हीं ने मेरी जीवन-रूपी गगरी को खाली किया है।
5. यह विडंबना! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।
भूलें अपनी या प्रवंचना औरों को दिखलाऊँ मैं।
आत्मकथा कविता का भावार्थ :- कवि का तात्पर्य यह है कि उनका स्वभाव बहुत ही सरल है। इसी स्वभाव के कारण उन्हें कई लोगो ने धोख़ा दिया, जिनसे उन्हें कष्ट सहना पड़ा। परन्तु इसके बावज़ूद भी कवि को अपने स्वभाव पे कोई मलाल नहीं है और वो अपनी आत्मकथा में इसका मज़ाक नहीं उड़ाना चाहते। ना वो अपनी भूलें बताना चाहते हैं और ना ही वो छल-कपट गिनाना चाहते हैं, जो उन्हें सहने पड़े।
6. उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।
अरे खिल-खिला कर हँसते होने वाली उन बातों की।
आत्मकथा कविता का भावार्थ :- कवि के अनुसार, वो रातों के हसीन लम्हे, जो उन्होंने अपनी प्रेमिका के साथ बिताए थे, वो साथ में हँसकर की गयी मीठी बातें आदि उनके निजी अनुभव हैं। वो ये अनुभव कैसे और क्यों अपनी आत्मकथा में लिखकर लोगो को सुनाएं। ये तो उनके जीवन की पूँजी है और इस पर सिर्फ और सिर्फ उनका हक़ है।
7. मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
आत्मकथा कविता का भावार्थ :- जीवनभर कवि ने जिन सुखों की कल्पना की और जिनके सपने देखकर कवि कभी-कभी जाग जाता था। उनमें से कोई भी सुख उन्हें नहीं मिला। कवि ने जब भी आपने हाथों को फैलाकर अपनी प्रेमिका को अर्थात उन सुखों को गले लगाना चाहा, तब-तब उनकी प्रेमिका मुस्कुरा कर भाग गई।
8. जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनि उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
आत्मकथा कविता का भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि अपनी प्रेमिका की सुंदरता का बखान करते हुए कहते हैं कि उनकी प्रेमिका के लाल-लाल गाल इतने सुन्दर थे कि उषा भी अपनी लालिमा उन्हीं से उधार लेती थी।
9. उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की?
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?
आत्मकथा कविता का भावार्थ :- कवि कहता है कि उनकी प्रेमिका के साथ बिताए हसीन पलों को याद कर के आज कवि इस अकेले संसार में अपना जीवन व्यतीत कर रहा है और उनके जीवन का एकमात्र सहारा यही यादें हैं। तो क्या तुम (मित्र) मेरी उन यादों को देखना चाहते हो? और इस प्रकार मेरी आत्मकथा पढ़कर, मेरी भूली हुई यादों को फिर से कुरेदना चाहते हो और मेरी यादों की चादर को तार-तार करना चाहते हो?
10. छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
क्या यह अच्छा नहीं क़ि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ ?
आत्मकथा कविता का भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में जयशंकर प्रसाद जी की महानता का पता चलता है। उनके अनुसार उनका जीवन बहुत ही सरल और सादगी भरा है। वह स्वयं को तुच्छ मनुष्य मानते हैं और उनके अनुसार उन्होंने जीवन में ऐसा कोई कार्य नहीं किया, जिससे वो खुद के बारे में बड़ी-बड़ी यश-गाथाएँ लिख सकें। इसलिए वो चुप रहना ही उचित समझते हैं और दूसरों की गाथाओं को सुनते हैं।
11. सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।
आत्मकथा कविता का भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि अपने मित्रों से कहते हैं कि तुम मेरी भोली-भाली, सीधी-साधी आत्मकथा सुनकर भला क्या करोगे? उसमें तुम्हारे काम लायक कुछ भी नहीं मिलेगा। मैंने ऐसा कोई महानता का कार्य भी नहीं किया जिसका वर्णन मैं कर सकूँ। अब मेरे जीवन के सारे दुःख शांत हो गए हैं और मुझमें अब उन्हें लिखने की इच्छा और शक्ति नहीं है।
( प्रश्न – उत्तर. )
1. कवि आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहते हैं ?
उत्तर:- कवि आत्मकथा लिखने से इसलिए बचना चाहते हैं क्योंकि उनका जीवन दुखदायी घटनाओं से भरा पड़ा है। अपनी सरलता के कारण उन्होंने कई बार धोखा भी खाया है। वे मज़ाक का कारण नहीं बनाना चाहते| उन्हें लगता है की उनकी आत्मकथा में कुछ रोचक और प्रेरक नहीं है|
2. आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में ‘अभी समय भी नहीं’ कवि ऐसा क्यों कहता है ?
उत्तर:- कवि के अनुसार उन्हें कोई बड़ी उपलब्धि प्राप्त नहीं है| उनका जीवन संघर्षों से भरा पड़ा है| वह अपने अभावग्रस्त जीवन के दुःखों को खुद तक सिमित रखना चाहते हैं| इसलिए कवि कहते हैं उनके आत्मकथा लिखने का अभी समय नहीं हुआ है|
3. स्मृति को ‘पाथेय’ बनाने से कवि का क्या आशय है?
उत्तर:- स्मृति को ‘पाथेय’ बनाने से कवि का आशय जीवनमार्ग के प्रेरणा से है। कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था, वह उसे कभी प्राप्त नहीं हुआ। इसलिए कवि स्वयं को जीवन-यात्रा से थका हुआ मानता है। जिस प्रकार ‘पाथेय’ यात्रा में यात्री को सहारा देता है, आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है ठीक उसी प्रकार स्वप्न में उसके द्वारा देखे हुए सुख की स्मृति भी कवि को जीवन-मार्ग में आगे बढ़ने का सहारा देती हैं।
4. भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
उत्तर:- कवि कहना चाहता है कि जिस प्रेम के कवि सपने देख रहे थे वो उन्हें कभी प्राप्त नहीं हुआ। उनका जीवन हमेशा उस सुख से वंचित ही रहा। सुख उसके बेहद करीब आते-आते उससे दूर चला गया|
(ख) जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उत्तर:- इन पंक्तियों में कवि ने अपनी प्रेयसी के सौंदर्य का वर्णन किया है| वे कहते हैं कि उनके प्रेयसी के गालों की लालिमा इतनी अधिक है की उषा की लालिमा भी उसके सामने फीकी हैं|
5. ‘उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की’ – कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर:- अपने प्रेयसी के साथ बिताये निजी प्रेम के मधुर और सुख भरे क्षणों को कवि किसी के सामने प्रकट करना नहीं चाहते| चाँदनी रातों में बिताए गए वे सुखदायक क्षण किसी उज्ज्वल गाथा की तरह हैं| इन स्मृतियों को वह औरों को बताकर अपना मज़ाक नहीं उड़ाना चाहते हैं| उन स्मृतियों को वह निजी सम्पत्ति की तरह अपने तक रखना चाहते हैं|
6. ‘आत्मकथ्य’ कविता की काव्यभाषा की विशेषताएँ उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर:- ‘जयशंकर प्रसाद’ द्वारा रचित कविता ‘आत्मकथ्य’ की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
• कवि ने खड़ी बोली में कोमल शब्दों का प्रयोग किया है|
जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुन्दर छाया में|
• मानवीकरण शैली जो छायावाद की प्रमुख विशेषता है, का प्रयोग किया गया है|
अरी सरलते तेरी हंसी उड़ाउँ मैं|
• तत्सम शब्दों का प्रयोग प्रमुखता से किया गया है|
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में अंसख्य जीवन-इतिहास
• गीत में गेय और छंदबद्ध है|
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की|
7. कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था उसे कविता में किस रूप में अभिव्यक्त किया है ?
उत्तर:- कवि के सुखद स्वप्न में उन्हें अपने प्रेयसी के साथ कुछ क्षण बिताने का मौका मिला| आलिंगन में लेने से पूर्व उनकी प्रेयसी उनसे दूर चली गयी| चाँदनी रात में प्रेयसी के साथ हुई बातें सदा के लिए दुःख में तब्दील हो गयीं|
रचना और अभिव्यक्ति
8. इस कविता के माध्यम से प्रसाद जी के व्यक्त्तित्व की जो झलक मिलती है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:- जयशंकर प्रसाद जी छायावादी काव्य के परवर्तक हैं| उनका जीवन सादगी भरा रहा| उन्होंने अभावग्रस्त जीवन जीया| वे विनम्र स्वभाव के थे| दिखावे नाम की कोई चीज़ उनके जीवन में नहीं रही| उन्होंने धोखे खाये परन्तु अपनी सरलता और भोलापन नहीं छोड़ा| अपनी कमज़ोरियों को वो सबके सामने लाने में वे हिचकते थे चूँकि उन्हें पता था कि ऐसा कर वे उपहास का पात्र बन जाएँगें| वे अपने दुःखों को खुद तक सीमित रखना चाहते थे|
MCQ
Question 2.
कवि ने अब तक कैसा जीवन जीया है?
(a) दुखदायी
(b) सुखी
(c) स्वतंत्र
(d) इनमें से कोई नहीं
Ans below
Question 3.
मुरझाकर गिर रही पत्तियाँ किसकी प्रतीक हैं?
(a) खुशियों की
(b) उदासी का
(c) निराशाओं का
(d) इनमें से कोई नहीं
Ans below
Question 4.
कवि के आलिंगन में आते-आते कौन रह गया?
(a) माँ
(b) पुत्री
(c) प्रेमिका
(d) इनमें से कोई नहीं
Ans below
Question 5.
कवि अपने किस स्वभाव को दोष नहीं देना चाहते हैं?
(a) मधुर
(b) उग्र
(c) कोमल
(d) सरल
Ans below
Question 6.
कवि के जीवन की गागर कैसी है?
(a) रंगीन
(b) खाली
(c) भरी
(d) सुनहरी
Ans below
Question 7.
कवि के जीवन के सारे दुःख-दर्द और अभाव अब कैसे हैं?
(a) मौन
(b) अधिक
(c) कम
(d) इनमें से कोई नहीं
Ans below
Question 8.
कवि अपनी आत्मकथा लिखने के बजाय क्या करना चाहता है?
(a) रोना चाहता है|
(b) खुश रहना चाहता है|
(c) हँसना चाहता है|
(d) दूसरों की आत्मकथा सुनना चाहता है|
Ans below
Question 9.
कवि के सरल स्वभाव के कारण किसने धोखा दिया है?
(a) प्रेमिका ने
(b) मित्रों ने
(c) संबंधियों ने
(d) इनमें से कोई नहीं
Ans below
Question 10.
कविता में थका हुआ पथिक कौन है?
(a) कवि
(b) कवि के मित्र
(c) कवि की प्रेमिका
(d) इनमें से कोई नहीं
Ans below
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